Karva chauth ki katha
(करवाँ चौथ की कथा और विधि)
आज हम करवा चौथ की कथा और विधि के बारे में आपको बताएंगे। हम इस ब्लॉग में आपको करवा चौथ के बारे में पूछे गए प्रश्नों के भी जवाब देंगे। करवा चौथ व्रत कथा से होने वाले लाभ के बारे में भी यहां पर आपको जानकारी दी जाएगी। इस पोस्ट में आपको को करवा चौथ मनानेे की विधि और करवाँँ चौथ का व्रत खोलनेे का तरीका भी बताया जायेगा।
Content
1. पुजा की सामाग्री
2. करवा चौथ की पुजा की विधि
3. व्रत खोलने का तरीका
4. करवाँ चौथ की कथा
1. पुजा की सामाग्री
रोली, मोली,पताशा, करवांं, गेहूं, पानी का कलश, लाल कपड़ा, चावल, चांदी की अंगूठी और साड़ी का एक ब्लाउज पीस इत्यादि।
2. करवा चौथ की पुजा की विधि
करवांं चौथ का व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु एवं स्वस्थ जीवन के लिए करती है। यह पूजा दोपहर में भी की जा सकती है। इस दिन एक करवां या गिलास ले, उसमें चावल भरे और उसमें एक पताशा तथा एक सिक्का डाल दे और लाल कपडे से उसे बांधे। फिर एक पाटे पर चौथ माता व गणेश जी की मूर्ति या फोटो रख दें। यदि फोटो या मूर्ति ना हो तो स्वास्तिक बना दे और पास में ही आखा पुरकर कर जल का कलश रख दें एवं घी का दीपक जलाएं। करवां या गिलास भी पास में ही रख दें। एक थाली में प्रसाद, गुड, नारियल, मेहंदी, मोली, धूप, सिंदूर,रोली और चावल रख दें पूजा करते समय अगरबत्ती जला देवे, चौथ माता व गणेश जी की मूर्ति के एवं जल के कलश पर रोली से तिलक करके चावल लगा देवें। हाथों में मेहंदी लगाकर मोली बांध लेवे, फिर बेसंदर पर धूप, प्रसाद व घी खेवें है और फिर चौथ की कहानी सुने और कहानी सुनते समय चार गेहूं के दाने हाथ में रख ले। के इसके बाद माता जी की आरती करें और उन गेहूं के चार दानों को चांद को अरख देने के लिए अपने पास रख ले।
3. व्रत खोलने का तरीका
चन्द्रोदय होने पर थाली में प्रसाद, अगरबती व जल का कलश ले कर। ऐसे स्थान पर ले जाएं जहां से चंद्रमा के दर्शन अच्छी तरह से हो, वहां पर प्रसाद का भोग लगाकर, जल चढ़ावे, अगरबत्ती जला देवें और पांच परिक्रमा देवें और चार गेहूँ के दानों से अरख दे ले। प्रसाद खाकर भोजन कर लेवें।
4. करवाँ चौथ की कथा(कहानी)
एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई अपनी बहन के साथ रहकर खाना खाते थे। कार्तिक माह लगते ही करवा चौथ आई। भाई अपनी बहन से बोले खाना खा ले। बहन बोली आज तो मेरा करवा चौथ का व्रत है, चांद देख कर खाना खाऊंगी भाइयों ने सोचा कि आज तो हमारी बहन भूखी ही रह जाएगी। इसलिए एक भाई तो दिया (टॉर्च) लाया और एक भाई चलनी लेकर टीले पर चढ़ गया, चलनी में चांद दिखा दिया। भाई बोले बहन चांद उग आया है। अब अरख दे लो।
बहन बोली, भाभियों आओ अरख दे लो। भाभियाँ बोली की ननद जी अभी तो आपका ही चांद उगा है, हमारा तो रात को उगेगा। वह अरख देकर भाइयों के साथ खाना खाने बैठ गई। पहले ग्रास में बाल आया और दूसरे ग्रास में छींक आई और तीसरा का ग्रास तोड़ते ही ससुराल से बुलावा आ गया। वो कपड़े निकालने लगी तो सारे कपड़े सफेद ही निकलते। माँँ बोली तेरे भाग्य में जो लिखा है, वही होगा। मां ने उसे सफेद कपड़े पहना दिये, हाथ में सोने का रुपया दिया और कहा जो तुम्हें पूरा आशीर्वाद दे, उसे यह सोने का रुपया दे देना और पल्ले को मोड़कर गांठ बाधं लेना। वह आगे गई तो उसे पूरा आशीर्वाद किसी ने नहीं दिया। एक छोटी सी ननंद पालने में सो रही थी वह बोली, "सिली हो सपूती हो सात पुत की मां हो, थारा अमर सुहाग हो।" उसने सोने का रूपया उस ननंद को देकर पल्ले में गांठ बांध ली। घर गई तो रोना कूटना लगा था। उसका पति मर चुका था, वो बोली मैं तो अपने पति को जलाने नहीं दूंगी। मै भी इनके साथ जंगल में रहूंगी। ननद रोज उसको जंगल में खाना दे आती। अब गाजती धोरती माही चौथा आई।करवां ले सात भाइयों की प्यारी करवा ले दिन में चांद ऊगानी करवांं ले बहुत भूखी करवा ले।
वह बोली, "माता वो मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे, तुझे मेरा सुहाग देना पड़ेगा।" माता बोली, "मेरे से बड़ी वैशाख की चौथ आएगी, उसके पैर पकड़ लेना।" वैशाख की चौथ आई। उसके पैर पकड़ ली तो चौथ माता बोली, "छोड़ पापिन मेरे पाँव। वो बोली, "माता वह मेरे भाई नहीं थे पिछले जन्म के बेरी दुश्मन थे। आपको तो मेरा सुहाग देना ही पड़ेगा। माता बोली, "मुझसे बड़ी भादवे की चौथ आएगी उसके पांव मत छोड़ना अगर उसके पाँव छोड दिए तो तुझे कहीं भी जगह नहीं मिलेगी"।भादवें की चौथ आई , 'करवांं ले भाइयों की प्यारी करवांं ले दिन में चांद उगानी करवा ले बहुत भूखी करवा ले।'
उसने माता के पैर पकड़ लिए, छोड़ पापिन! मेरे पैर पकड़ने लायक नहीं है तू। हे माता! वो मेरे भाई नहीं पिछले जन्म के दुश्मन थे। आप को बताना पड़ेगा अब मैं क्या करूं। माता बोली "तुझे इतनी शिक्षा कौन दे गया माता मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया आप ही बताओ अब मैं क्या करूं। तब माता बोली, "मेरे से बड़ी करवा चौथ आएगी उसके पांव मत छोड़ना। वो जो मांगे वो सब सामान मंगा लेना और सारे सुहाग का सामान मंगा लेना।" दूसरे दिन ननंद रोटी देने आई तो वह बोली, ननद जी काजल, मेहंदी, बिंदी, रोली, मोली, सारा सुहाग का सामान लाना और एक बेश भी लाना। ननद ने एक-एक कर सारे सामान ला दिए।
कार्तिक की करवांं चौथ आई, करवांं ले करवा ले, दिन में चांद देखनी करवा ले बहुत भूखी करवा ले। माता वे मेरे पिछले जन्म के दुश्मन थे और यह कहकर उसने माता के पैर पकड़ लिए माता बोली, "छोड़ पपिन तु मेरे पांव पकड़ने के लायक नहीं है"।माता आपको मेरा सुहाग देना ही पड़ेगा। माता बोली "तेरे पास जंगल में सुहाग की क्या चीज है।" वह बोली, "माता आप मांगो वह सब है।" माता बोली, "रोली, मोली, पताशा, गेहूँ, करवा, जलेबी ला, उसने सभी चीजें निकालकर दे दी। माता ने कहा तुझे यह ज्ञान कहां से आया है। माता मुझे जंगल में यह ज्ञान कौन देगा। मुझे तो सारा ज्ञान आपसे ही मिला है। माता ने सारी सुहाग की चीजों को घोलकर छीटाँ दे दिया तो उसका पति अकड़ कर बैठा हो गया और जाते हुए माता ने झोपड़ी को लात मारी तो महल- मंदिरों हो गए। सुबह जब ननंद खाना देने आई। तो वह बोली "मेरे भाई भाभी कहां गए।" भाभी ने ऊपर से आवाज लगाई ननद जी आओ, हम तो यहां बैठे हैं उसने पूछा भाभी यह सब कैसे हुआ। तब भाभी बोली रात में चौथ माता आई थी। वही यह सब कर कर गई है।
जाओ ननद जी, माता जी को बोलो कि पुरानी चौथ का उजलवाओं और नई घडाओं और हमें गीत गाते लेने आओ। ननद ने मां को जाकर कहा, मां भाभी ने तो भाई को जिंदा करवा दिया और भाभी बोलती है कि उनको गीत गाते हुए लेने चलो। सासु जी गीत गाते हुए बहू को लेने आई। बहू सास के पैरों में पड़ी सास बहू के पैरों में पड़ी। दोनों एक दूसरे को कहने लगी कि यह आप के भाग्य से ही सही हुए हैं। सासु बोली "बहू घर चलो और चौथ माता का उजरना करके सास बहू बेटे को घर ले आई।
जैसे माता आपने उस साहूकार की बेटी को सुहाग दिया वैसे माता सबको देना। कहने वाले को, सुनने वाले को, हुँकारा भरने वाले को,सारे परिवार को देना।
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