5 Panchtantra short stories in hindi (पंचतत्रं कहानियाँ )
Today we are writing 5 panchtantra short stories in Hindi with moral for kids. These story are only for kids and also written in hindi language. These hindi stories with moral may also be useful for teacher.
We are writing 5 panchtantra stories in hindi for kids here.
Below are 5 very interesting panchtantra stories written in Hindi with moral. We hope you will like this Hindi story collection.
आज हम लिख रहे हैं, panchtantra ki kahaniya in hindi with moral। ये कहानियाँ केवल बच्चों के लिए हैं और हिंदी भाषा में भी लिखी गई हैं। नैतिक के साथ ये हिंदी कहानियां शिक्षकों के लिए भी उपयोगी हो सकती हैं।
हम यहां बच्चों के लिए panchtantra stories in hindi with moral.
नीचे 5 अति रोचक पंचतत्रं कहानियाँ हिन्दी में लिखी गई हैं। हमें उम्मीद है कि आपको यह हिंदी कहानी संग्रह पसंद आएगा।
Content
1. मूर्ख को सीख
2. शत्रु की सलाह
3. सिंह और सियार4. कंजूस गीदड5. बहरूपिया गधा
1. मूर्ख को सीख
(Panchtantra ki kahaniya in hindi)
एक जंगल में एक पेड पर गौरैया पक्षी का घोंसला था। एक दिन बात, उस दिन कडाके की ठंड पड रही थी। ठंड के कारण कांपते हुए तीन चार बंदरो ने उसी पेड के नीचे आश्रय लिया। एक बंदर बोला कि “यदि कहीं से आग तापने को मिले तो हमारी ठंड दूर हो सकती हैं।”
दूसरे बंदर ने उपाय बताया “देखो, यहां कितनी सूखी पत्तियां गिरी पडी हैं। हम इन्हें इकट्ठा कर लेते और फिर उसे सुलगाने का उपाय सोचते हैं।”
बंदरों ने सूखी पत्तियों का ढेर बनाया और फिर गोले में बैठकर सोचने लगे कि ढेर को कैसे जलाया जाए। तभी एक बंदर की नजर दूर हवा में उडते एक जुगनू पर पडी। उधर ही दौडता हुआ वह चिल्लाने लगा “देखो, हवा में चिंगारी उड रही हैं। इसे पकडकर ढेर के नीचे रखकर फूंक मारने से आग जल जाएगी।”
“हां हां!” कहते हुए सभी बंदर भी उधर दौडने लगे। पेड पर अपने घोंसले में बैठी गौरैया यह सब देख रही थी। उससे चुप नहीं रहा गया। वह बोली ” बंदर भाइयो, यह चिंगारी नहीं हैं यह तो जुगनू नाम का पक्षी है"।
एक बंदर क्रोध से गौरैया की देखकर गुर्राया और बोला "मूर्ख चिडिया, चुपचाप घोंसले में बैठी रह। हमें सिखाने चली हैं।”
इस बीच एक बंदर उछलकर जुगनू को अपनी हथेलियों के में कैद करने में सफल हो गया। जुगनू को ढेर के नीचे रख दिया गया और सारे बंदर लगे चारों ओर से ढेर में फूंक मारने।
गौरैया ने फिर सलाह दी “भाइयो! आप लोग गलती कर रहें हैं। जुगनू से आग नहीं जलेगी। दो पत्थरों को टकराकर उससे चिंगारी पैदा करके आग जला लो।
बंदरों ने गौरैया को घूरा। आग नहीं सुलगी तो गौरैया फिर बोल उठी “भाइयो! आप मेरी सलाह मानिए, कम से कम दो सूखी लकडियों को आपस में रगडकर आग जलाइए।
सारे बंदर आग न सुलगा पाने के कारण खीजे हुए थे। एक बंदर क्रोध से भरकर आगे बढा और उसने गौरैया पकडकर जोर से पेड के तने पर मारा। गौरैया फडफडाती हुई नीचे गिरी और मर गई।
( moral of story) नैतिक शिक्षा :-- मूर्खों को सीख देने का कोई लाभ नहीं होता है, उल्टा हानि ही होती है।
2. शत्रु की सलाह
(Panchtantra ki kahaniya in hindi)
नदी किनारे बरगद का एक विशाल पेड था। उस पेड पर बगुलों का एक झुंड रहता था। उसी पेड के कोटर में काला नाग भी रहता था। जब बगुलों के अंडों से बच्चे निकल आते और जब वह थोडे बडे होकर मां-बाप से दूर रहने लगते, तभी वह नाग उन्हें खा जाता था। इस प्रकार वर्षो से काला नाग बगुलों के बच्चे खा रहा था। बगुले भी वहां से नहीं जाना चाहते थे, क्योंकि वहां नदी में कछुओं की भरमार थी। कछुओं का नरम मांस बगुलों को बहुत अच्छा लगता था।
एक बार जब नाग बगुले एक बच्चे को खाने लगा तो पिता बगुले की नजर उस पर पड गई। बगुले को पता चल गया कि उसके पहले बच्चों को भी वह नाग खाता रहा होगा। उसे बहुत दुखः हुआ। उसे रोते हुए एक कछुए ने देखा और पूछा “मामा, क्यों रो रहे हो?”
दुखः में सभी जीव हर किसी को अपना दुखः बता देता हैं। उसने नाग और अपने मॄत बच्चों के बारे में बताकर कहा “मैं उस नाग से बदला लेना चाहता हूं।”
कछुए ने सोचा “अच्छा तो इस दुखः में मामा रो रहा हैं। जब यह हमारे बच्चों खा जाता हैं तब तो कुछ ख्याल नहीं आता कि हमें कितना दुखः होता होगा। तुम सांप से बदला लेना चाहते हो तो हम भी तो तुमसे बदला लेना चाहेंगे।”
बगुला अपने शत्रु को अपना दुख बताकर गलती कर बैटा था। चतुर कछुआ एक तीर से दो शिकार करने की योजना बना चुका था। वह बोला “मामा! मैं तुम्हें बदला लेने का बहुत अच्छा उपाय बताता हूँ। "
बगुले ने पूछा “जल्दी बताओ वह योजना क्या हैं। मैं तुम्हारा एहसान जीवन भरा नहीं भूलूंगा।’ कछुआ मन ही मन खुश हुआ और उपाय बताने लगा “यहां से कुछ दूर एक नेवले का बिल हैं। नेवला सांप का घोर शत्रु हैं। नेवले को मछलिया बहुत पसंद होती हैं। तुम छोटी-छोटी मछलियां पकडकर नेवले के बिल से सांप के कोटर तक बिछा दो। नेवला मछलियां खाता-खाता सांप तक पहुंच जाएगा और उसे मार देगा।’ बगुला बोला “तुम मुझे उस नेवले का बिल दिखा दो।’
कछुए ने बगुले को नेवले का बिल दिखा दिया। बगुले ने वैसे ही किया जैसे कछुए ने समझाया था। नेवला सचमुच मछलियां खाता हुआ कोटर तक आ पहुंचा। नेवले को देखते ही नाग ने फुंकार छोडी। कुछ ही देर की लडाई में नेवले ने सांप के टुकडे-टुकडे कर दिए। बगुला खुशी से उछल पडा। कछुए ने मन ही मन में सोचा “यह तो शुरुआत हैं मूर्ख बगुले। अब मेरा बदला शुरु होगा और तुम सब बगुलों का नाश होगा।”
कछुए का सोचना सही निकला। नेवला नाग को मारने के बाद वहां से नहीं गया। उसे अपने चारों ओर बगुले नजर आए,उसके लिए महिनों के लिए स्वादिष्ट खाने का इंतजाम हो गया इस कारण नेवला उसी कोटर में बस गया, जिसमें काला नाग रहता था और रोज एक बगुले को अपना शिकार बनाने लगा। इस प्रकार एक-एक करके सारे बगुले मारे गए। कछुए की चाल सफल हुई।
(Moral of story) नैतिक शिक्षा :-- शत्रु की सलाह में उसका स्वार्थ छिपा होता है।
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3. सिंह और सियार
(Panchtantra ki kahaniya in hindi)
वर्षों पहले की बात है। हिमालय की किसी गुफा में एक बलिष्ठ शेर रहता था। एक दिन वह एक भैंसे का शिकार और भक्षण कर अपनी गुफा को लौट रहा था। तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला। जो उसके सामने लेटकर उसे दण्डवत् प्रणाम करने लगा। जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “सरकार मैं आपका सेवक बनना चाहता हूँ। कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करुँगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना भोजन कर लूंगा।” शेर ने उसकी बात मान ली और उसे मित्रतापुर्वक अपनी शरण में ले लिया।
कुछ ही दिनों में शेर द्वारा छोड़े गये शिकार को खा-खा कर वह सियार बहुत मोटा हो गया। प्रतिदिन सिंह के पराक्रम को देख-देख उसने भी स्वयं को सिंह का प्रतिरुप मान लिया। एक दिन उसने सिंह से कहा, “अरे सिंह ! मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूँ। आज मैं एक हाथी का शिकार करुँगा और उसका भक्षण करुँगा और उसके बचे-खुचे माँस को तुम्हारे लिए छोड़ दूँगा।” चूँकि सिंह उस सियार को मित्रवत् देखता था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा न मान उसे ऐसा करने से रोका। भ्रम-जाल में फँसा वह दम्भी सियार सिंह के परामर्श को अस्वीकार करता हुआ पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ। वहाँ से उसने चारों और नज़रें दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाथियों के एक छोटे से समूह को देखा। फिर सिंह-नाद की तरह तीन बार सियार की आवाजें लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा। किन्तु हाथी के सिर के ऊपर न गिर वह उसके पैरों पर जा गिरा। और हाथी अपनी मस्तानी चाल से अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। क्षण भर में सियार का सिर चकनाचूर हो गया और उसके प्राण पखेरु उड़ गये।
पहाड़ के ऊपर से सियार की सारी हरकतें सिंह देखता हुआ सोच रहा था कि "मूर्ख, अपना सारा जीवन घमंड करने में ही व्यतीत कर देते हैं।"
(Moral of story) नैतिक शिक्षा :-- कभी भी जीवन में घमण्ड नहीं करना चाहिए।
4. कंजुस गीदड
(Panchtantra ki kahaniya)
एक बार की बात है जंगल में एक गीदड़ रहता था। वह बहुत ही कंजूस था। वह गीदड़ एक जंगली जानवर था। इसलिए वह रुपए-पैसों में तो कंजूसी नहीं कर सकता था। वह अपने शिकार को खाने में कंजूसी करता था। एक दिन उसने एक खरगोश का शिकार किया। पहले दिन वह खरगोश का एक कान खाता और फिर दूसरे दिन दूसरा कान खाता। ठीक उसी प्रकार अपने शिकार को बचा-बचा कर खाता, जिस प्रकार एक कंजूस व्यक्ति पैसों को बचा बचा कर खर्च करता है।
शिकार खाने में कंजूसी करता है। इस कारण वह भूखा रह जाता और वह दुर्बल भी हो गया था। एक बार उसने एक हिरण का शिकार किया। वह उस शिकार को खींचकर गुफा में ले गया। उसने पहले हिरण के सींग खाने का फैसला लिया ताकि बाद में मांस बचा रहे। इस कारण कई दिनों तक सिगों को चबाता रहा। उस हिरण का बचा हुआ मांस सड गया और वह गिद्ध और बाज के खाने लायक रह गया।
इस प्रकार गीदड़ हंसी का पात्र बन गया। जब भी वह बाहर निकलता था, सब उसे देखकर कहते हैं देखो मक्खीचूस गीदड़ जा रहा है पर वह उन सब की परवाह नहीं करता था। उसी वन में एक दिन एक शिकारी शिकार करने के लिए आया। उसको एक सूअर दिखाई दिया और उसने उस पर निशाना लगा कर तीर छोडा। यह तीर सूअर की कमर में घुसा। इस कारण सूअर क्रोधीत हो उठा और क्रोध में उस शिकारी की ओर दौड़ा शिकारी पर अपने नुकीले दांत लगाकर उसे मार दिया। फिर सूअर भी मर गया। इस प्रकार शिकारी व शिकार दोनों ही मर गए। तभी वह कंजूस गीदड़ वहां आ निकला और यह देखकर खुशी से उछल पड़ा। उसने हिसाब लगाया कि शिकारी और सूअर का मांस लगभग 2 महीने तक खा लूँगा।
तभी उसकी नजर पास में पड़े धनुष पर पड़ी, उसने धनुष को सूघां। धनुष के डोर कोनों पर चमड़े की पट्टी बंधी थी। उसने सोचा "आज तो इस चमड़े की पट्टी को खा कर ही काम चला लूंगा, मांंस नहीं खाऊंगा और पूरा बचा लूंगा।"
ऐसा सोचकर वह धनुष के कोनो में मुँह डाल चमडे की पट्टी को काटने लगा। जैसे ही पट्टी कटी डोर छूठी और धनुष की लकड़ी फट से सीधी होगी। धनुष का कोना गीदड़ के तालू में लगा और पूरे मुंह को चीर गया। कंजूस गीदड वही मर गया।
(Moral of story) नैतिक शिक्षा :-- अधिक कंजूसी का परिणाम अच्छा नहीं होता।
5. बहरूपिया गधा
एक नगर में धोबी था। उसके पास एक गधा था, जिस पर वह कपडे लादकर नदी तट पर ले जाता और धुले कपडे लादकर लौटता। धोबी का परिवार बडा था। सारी कमाई आटे-दाल व चावल में खप जाती। गधे के लिए चार खरीदने के लिए कुछ न बचता। गांव की चरागाह पर गाय-भैंसें चरती। अगर गधा उधर जाता तो चरवाहे डंडों से पीटकर उसे भगा देते। ठीक से चारा न मिलने के कारण गधा बहुत दुर्बल होने लगा। धोबी को भी चिन्ता होने लगी, क्योंकि कमजोरी के कारण उसकी चाल इतनी धीमी हो गई थी कि नदी तक पहुंचने में पहले से दुगना समय लगने लगा था।
एक दिन नदी किनारे जब धोबी ने कपडे सूखने के लिए बिछा रखे थे तो आंधी आई। कपडे इधर-उधर हवा में उड गए। आंधी थमने पर उसे दूर-दूर तक जाकर कपडे उठाकर लाने पडे। अपने कपडे ढूंढता हुआ वह सरकंडो के बीच घुसा। सरकंडो के बीच उसे एक मरा बाघ नजर आया।
धोबी कपडे लेकर लौटा और गट्ठर बन्धे पर लादने लगा गधा लडखडाया। धोबी ने देखा कि उसका गधा इतना कमजोर हो गया हैं कि एक दो दिन बाद बिल्कुल ही बैठ जाएगा। तभी धोबी को एक उपाय सूझा। वह सोचने लगा “अगर मैं उस बाघ की खाल उतारकर ले आऊं और रात को इस गधे को वह खाल ओढाकर खेतों की ओर भेजूं तो लोग इसे बाघ समझकर डरेंगे। कोई निकट नहीं फटकेगा। गधा खेत चर लिया करेगा।”
धोबी ने ऐसा ही किया। दूसरे दिन नदी तट पर कपडे जल्दी धोकर सूखने डाल दिए और फिर वह सरकंडो के बीच जाकर बाघ की खाल उतारने लगा। शाम को लौटते समय वह खाल को कपडों के बीच छिपाकर घर ले आया।
रात को जब सब सो गए तो उसने बाघ की खाल गधे को ओढाई। गधा दूर से देखने पर बाघ जैसा ही नजर आने लगा। धोबी संतुष्ट हुआ। फिर उसने गधे को खेतों की ओर खदेड दिया। गधे ने एक खेत में जाकर फसल खाना शुरु किया। रात को खेतों की रखवाली करने वालों ने खेत में बाघ देखा तो वे डरकर भाग खडे हुए। गधे ने भरपेट फसल खाई और रात अंधेरे में ही घर लौट आया। धोबी ने तुरंत खाल उतारकर छिपा ली। अब गधे के मजे आ गए।
हर रात धोबी उसे खाल ओढाकर छोड देता। गधा सीधे खेतों में पहुंच जाता और मनपसन्द फसल खाने लगता। गधे को बाघ समझकर सब अपने घरों में दुबककर बैठे रहते। फसलें चर-चरकर गधा मोटा होने लगा। अब वह दुगना भार लेकर चलता। धोबी भी खुश हो गया।
मोटा-ताजा होने के साथ-साथ गधे के दिल का भय भी मिटने लगाउसका जन्मजात स्वभाव जोर मारने लगा। एक दिन भरपेट खाने के बाद गधे की तबीयत मस्त होने लगी। वह भी लगा लोट लगाने। खूब लोटा वह गधा। बाघ की खाल तो एक ओर गिर गई। वह अब खालिस गधा बनकर उठ खडा हुआ और डोलता हुआ खेटह् से बाहर निकला। गधे के लोट लगाने के समय पौधों के रौंदे जाने और चटकने की आवाज फैली। एक रखवाला चुपचाप बाहर निकला। खेत में झांका तो उसे एक ओर गिरी बाघ की खाल नजर आई और दिखाई दिया खेत से बाहर आता एक गधा। वह चिल्लाया “अरे, यह तो गधा हैं।”
उसकी आवाज औरों ने भी सुनी। सब डंसे लेकर दौसे। गधे का कार्यक्रम खेत से बाहर आकर रेंकने का था। उसने मुंह खोला ही था कि उस पर डंडे बरसने लगे। क्रोध से भरे रखवालों ने उसे वहीं ढेर कर दिया। उसकी सारी पोल खुल चुकी थी। धोबी को भी वह नगर छोडकर कहीं और जाना पडा।
1 टिप्पणियाँ
Nice bedtime stories
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